आखिरकार मुझे उस
बिस्तर पर आना
ही पड़ा। देह, दीवाल
की तरफ सिमटती
रही। दीवाल से
सटी देह को
सैफी ने
अपनी सीने तक
खींच लिया। उसने
मेरी दोनों हथेलियां
कस कर दबोच
ली ताकि मै
अपने को छुड़ा
ना सकूं। वैसे
भी छुड़ाकर मै
जाती भी कहां?
अब तो मेरे
लिए जाने की
कोई और जगह
भी नहीं थी।
सैफी के
पास आने के
लिए मै अपने
को तैयार कर
रही थी- सैफी मेरा
बॉय फ्रेंड है।बॉय फ्रेंड के
साथ बिस्तर पे
लेटने का
यह मौका मुझे
रोमांचित कर रहा
था । अब
मै १ ६ साल
की खिलती लड़की
थी । अन्य
सभी लड़कियां जब बॉय
फ्रेंड के
साथ सो सकती
हैं तो मै क्यों
नही।
वैसे भी, सेक्स
के स्वाद का पाने
की चाह, अब
मेरे मन में
भी गुपचुप जागने
लगी थी। सैफी मुझे
पूरी तरह पाना
चाहता था। मै
तो अपने समूचे
मन प्राण से
उसे अपना सबकुछ
दिए बैठी थी।
हां सिर्फ मेरी
देह ही, घोंघे
की तरह सिमटी-सिकुड़ी रहती थी।
अपनी सारी लाज-शर्म, खौफ तोड़ा
डालने का वक्त
क्या अभी नहीं
आया? अगर आज
अपनी सिमटी हुई
देह उन्मुक्त न
कर दूं, अगर
आज सारी बेड़ियां
तोड़कर अपनी देह
अर्पित न कर
दूं, अगर आज
अपने जिन्दगी के
प्यार को वंचित
रखूं, तो यह
अपने को ही
वंचित रखना होगा।सैफी की
मांग कहीं से
भी अन्यायपूर्ण नहीं
है। बॉय फ्रेंड के
आगे अपने को
समिर्पत कर देना
कहीं से भी
गुनाह नहीं है।
जो कुछ बचा-खुचा है,
वह किसी न
किसी दिन तो
मुझे सब कुछ
देना ही होगा,
तब आज ही
क्यों नही? सैफी ने
मुझे चूम लिया।
होंठों पर गहरा
सा चुंबन!
उसके चुंबन से अपने
को छुड़ाते हुए
मैने उसे याद
दिलाया, 'बत्ती जल रही
है!' सैफी ने बत्ती
बुझा दी! अंधेरे
कमरे में उसने
मेरी मंदी हुई
पलकें, सूखे हुए
होंठ टुड्डियों की
सलवटों को अपने
प्यार से नम
कर दिया! मेरी शर्ट के
बटन खोलकर, उसने
मेरे उभारों में
अपना चेहरा गड़ा
दिया। मेरे स्तनों
की घुंडियों को
उसने अपने होठों
से सिर्फ भिंगोया
ही नहीं, दांतों
से काटता-बकोटता
भी रहा। अपनी
दोनों मुटि्ठियों में
वह मेरा वक्ष
इतना कसकर दबाता-मसलता रहा मानों,
उन्हें पीसकर, बिल्कुल पानी
बनाकर पी जाएगा।
सैफी मेरी
स्कर्ट उघाड़ने
में लगा रहा
और न चाहते
हुए भी मेरे
दोनों हाथ उसे
रोकते रहे। सैफी मेरी
देह पर चढ़
गया। न चाहते
हुए भी मेरे
हाथ उसे उतार
देने की कोशिश
करते रहे। उसके
बाद फिर-पिफर
वही तरीका! अपने
दोनों पांवों से
वह मेरे दोनों
पैर चौड़े करने
के लिए जूझता
रहा। मैने कसकर
अपनी आंखें मूंद
ली, मानो मेरी
आंखे खुल न
जाएं, मानो मेरी
आंखे ऐसा कोई
दृश्य न देखें
कि मै शर्म
से गड़ जाऊं।
मैने कसकर अपने
दांतों पर दांत
जमा लिए, पूरी
ताकत से अपने
होंठ कसे रही,
ताकि मेरी जुबान
से एक भी
शब्द न निकले।
इसके बाद किसी
आकिस्मक आघात से,
मै चीख उठी।
सैफी ने
मेरी चीख को
अपने दोनों हथेलियों
में दबोच कर
कहा 'जरा सा
और बर्दाश्त कर
लो बस होने
ही वाला है!
बस हो गया।
मेरी रानी जरा सा
और सहन कर
लो। बस जरा
सा!' सैफी लगातार
आघात करता रहा
लेकिन वह कोई
चट्टान नहीं हिला
पाया। वह मेरी
देह पर से
उतर गया। अब,
वह उस अदृश्य
चट्टान को हटाने
के लिए अपनी
उंगलियों का इस्तेमाल
करने लगा। मेरी
जांघे थर-थर
कांपने लगी। जांघों
से वह थरथराहट
समूचे अंग में!
ऐसा लगा जैसे
मेरी जान ही
निकल जाएगी। सैफी पसीने-पसीने हो गया,
मगर उसने कोशिश
नहीं छोड़ी। राह
की कोई बाधा
वह भला क्यों
माने? चाहे जैसे
भी हो, राह
प्रशस्त करके, उसे आगे
बढ़ना ही होगा।
उसके सामने ही
सोने की खान
थी। उसे वह
खान चाहिए ही
चाहिए।
मैने खुद अपनी
हथेलियों से अपने
होंठ दबाए रखे।
जैसे ही मेरे
हाथों को चीरते
हुए कोई आवाज
निकलने को हुई,
सैफी ने
मेरे मुंह में
मेरा रुमाल ठूंस
दिया, मानो आज
के दिन का एक
भी कण मेरी
चीत्कार से टूट-फूट न
जाए। ना, कहीं
कुछ नहीं घट
रहा था, मुझे
कहीं कोई दर्द
नहीं हो रहा
था, मेरा यह
निम्नांग मानो मेरा
न हो, मेरे
शरीर का कोई
हिस्सा न हो।
मेरे शरीर की सारी
तकलीफ मिट गई
है। माथे के
ऊपर सीलिंग पंखा
घर्र-घर्र घूमता
हुआ, मेरी बेहोश
देह पसीने से
तर-ब-तर!
सैफी बाधा
विघ्नों को जूझता
हुआ, मुझे अन्दर-बाहर से
चूरमार करता हुआ,
आखिरकार मेरे कौमार्य
को जीतने में
कामयाब हो गया।
सैफी मेरी
देह से नीचे
उतर गया। अब
एक तरफ दीवार,
दूसरी तरफ सैफी
! मुझमे इतनी भी
ताकत नहीं रही
कि अपने को
किसी भी तरफ,
बून्दभर भी हिला
सकूं। मै स्थिर
लेटी रही। धीरे-
धीरे मैने आंखें
खोलकर देखा। जब
मुझमे जरा दम
आया, मैने अपने
को उठा कर,
बिस्तर से नीचे
उतारना चाहा, लो मेरी
राह रोके पहाड़
जैसी बाधा वह
सैफी था।
मैने बमुश्किल कहा जाने
दो मुझे- `उस
दिन पहली
बार सैफी को तुम
करके संबोधित किया।
सैफी ने
मुझे छोड़ दिया।
मै अंधेरे में
ही बाथरूम खोजती
रही। मेरा योनि दर्द
से फटी जा रहा
थी। बाथ
रूम में
पेशाब की जगह
जलहीन रक्त
धारा फूट पड़ी। मुझमे
चीखने कराहने की
भी ताकत नहीं
बची थी। असहनीय
पीड़ा से मै
गौंगियाती रही। में बाथरूम से लड्खाताते पेरो से वापस कमरे
में आई। सैफी आँख बंद किये लेटे थे। उनके चेरे
चेहरे पर सुकून था, शायद प्रेमिका के जिस्म को हासिल कर लेने का सुकून। सुकून तो मेरे
चेहरे पर भी था अपने प्रेमी के हो जाने का सुकून। में बिस्तर के ऊपर आपकर बैठ गई आहट से सैफी ने आँखे
खोल दी। मुस्कराकर बोले अस्मिता जानू आज अपनी
सुहाग रात चल रही है। में हंस पड़ी - मेरी सुहागरात में एक भी फूल नहीं। मेरी बात सुनकर
सैफी ने लूंगी खिसका कर खोल दी की। उनकी
रोहेदार देह, नीचे के हिस्से में और ज्यादा रोये थे। घने-घने बाल
के नीचे, एक सख्त पुरुषांग! पुरुषांग
के सिरे पर एक लाल फूल! एक मुस्लिम मर्द की पहचान। मेरी सुहाग
सेज सैफी के पुरुषांग का फूल ही मेरी सुहागरात
का फूल बन गया बन गया। मे एक सजीले मर्द के बिस्तर में बैठी थी। फिर उस मर्द ने मुझ
कमसिन लड़की को वापस अपने सीने में लगा लिया।
और फिर मुझे अपनी बीवी की तरह कई बार प्यार
किया।
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