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Friday 27 September 2013

पहले सेक्स की सुबह..

आज की सुबह बड़ी सुहानी है। शायद मेरे बदन से खेलना चाहती है क्यों ? आज से पहले तो सुबह  कभी इतनी सुहानी नहीं लगती थी। ओह ! समझी, अब मेरे बदन में मेरे प्रियतम की खुशबु जो बस गई है। सच सैफी आपने मेरे मन और जिस्म दोनों को जीत लिया। मेरे जिस्म से अपने जिस्म को रगड़ कर आपने उसे खुशबूदार बना दिया। ओह सैफी ! पहले सेक्स के वक़्त आपने मुझे चकनाचूर कर दिया आपके आघातों ने मुझे बार बार बिस्तर पर सिमटने पर मजबूर कर दिया, कितना दर्द दिया आपने मुझे पर ये दर्द ही तो चाहती थी में। सच इस दर्द ने मुझे मुक़म्मल कर दिया। पहले सेक्स के बाद आप कई बार मेरे ख्यालो में आये अपनी सख्त मर्दानगी के साथ और हर बार में आपके विशेष सख्त अंग  और उसके  आगे के लाल फूल को याद करके सहम सहम  गई।  आज सुबह जब में उठी तो इस दर्द के साथ एक सुखद अनुभूति भी थी मेरे पास। आपको पा लेने के एहसास ने मुझे खुश कर दिया। मेरे   कौमार्य को तोड़ कर मुझे मुझे पूरा कर दिया। सच आज की सुबह आप मेरे साथ नहि हे पर मेरे जिस्म में बसी आपकी महक इस सुबह को सुहाना बना रही है।   

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