में भी तो साधारण लड़की ही ठहरी। जब लड़कियां अपनी सुहागरात को भुला नहीं पाती तो भला मै कैसे इनसे अलग हो सकती हूँ। सच मुझ पे भी पहले सेक्स का खुमार अभी तक चड़ा हुआ है। मै अब भी पहले सेक्स को याद करके सिहर - सिहर जाती हूँ। कैसे मेरे प्रियतम ने मेरे जिस्म को बेलिबास किया, मै पहली बार किसी मर्द के सामने पूरी नंगी थी। बचपन के बाद पहली बार कोई मेरे जिस्म को प्राकृतिक रूप में देख रहा था। सच शर्म के मारे मेरी आँखे अपने आप ही बंद हो गई थी मानो खुद को बिना कपडे के देख ही नहीं पाएंगी। पर वो तो मुझे बिना कपड़ो के देख रहा था साथ में अपने कपडे भी उतार रहा था। देखते - देखते वो भी बिना कपड़ो के हो गया। मेरे सामने पहली बार कोई मर्द बिना कपड़ो के था। मेने पलकों के किनारे से उन्हें देखा। मेरी नज़र सैफी के कसरती बदन से फिसल कर उनके कठोर शिश्न पर ठहर गई, देख मेरी साँसों की रफ़्तार बढ गई। उनके मुस्लिम शिश्न के आगे के गुलाबी हिस्से को देखकर मेरे होठो से खुद निकला ओह सैफी! और फिर अपना नाम सुनकर वो मेरे जिस्म पे चादर की तरह छाते चले गए, मेरी हर बात , हर विनंती को ठुकराकर। ओह सैफी आप मेरे जिस्म से तब उतरे जब मेरा कौमार्य चूर हो चूका था।मैं सिमट के आपके सीने पर सर रख के अपने आपको समेट रही थी और आप मेरे स्तनों और विशेष अंगों को दबा रहे थे। सच पहले सेक्स का खुमार अब तक मेरे जिस्म से नहीं उतरा है और जल्दी उतरेगा भी नहीं।
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